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तीन छोटे सूअर/The Three Little Pigs

तीन छोटे सूअर/The Three Little Pigs


The Three Little Pigs

बहुत समय पहले की बात है. तीन सूअर अपनी माँ के साथ जंगल में रहा करते थे. जब वे कुछ बड़े हुए, तो एक दिन उनकी माँ ने उन्हें बुलाया और बोली, “बेटों! अब तुम तीनों इतने बड़े हो गए हो कि अपने दम पर अपनी-अपनी ज़िंदगी जी सको. इसलिए मैं चाहती हूँ कि तुम तीनों बाहर की दुनिया देखो और अपनी-अपनी ज़िंदगी बनाओ.”

माँ की बात मान तीनों सूअर घर से निकल पड़े. चलते-चलते वे दूसरे जंगल में पहुँचे. तीनों थक चुके थे. इसलिए एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे. कुछ देर आराम करने के बाद वे वहीं बैठकर अपनी आगे की ज़िंदगी के बारे में एक-दूसरे से चर्चा करने लगे.

एक सूअर बोला, “मेरे हिसाब से अब हमें अलग-अलग राह पकड़ लेनी चाहिए और अलग-अलग रहकर अपनी किस्मत आज़मानी चाहिए.”

दूसरे सूअर को भी ये बात जम गई. लेकिन तीसरा सूअर बोला, “मुझे ये ठीक नहीं लगता. हमें एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. हम एक जगह रहकर भी अलग-अलग तरीकों से अपनी किस्मत आज़मा सकते हैं और अपनी ज़िंदगी बना सकते हैं.”

“वो कैसे” दोनों सूअर बोले.

“हम एक जगह पर ही अलग-अलग घर बनाकर रहेंगे. आस-पास रहने से मुसीबत के समय कम से कम हम एक-दूसरे के काम आ सकेंगे. क्यों क्या कहते हो?” तीसरा सूअर बोला.

यह बात दूसरे दोनों सूअरों ने मान ली. उसके बाद तीनों उसी स्थान पर आस-पास घर बनाने लगे.

पहले सूअर ने सोचा कि मुझे भूसे का घर बनाना चाहिए. भूसे का घर जल्दी बन जायेगा और मेहनत भी कम लगेगी. मेहनत बचाने के लिए उसने भूसे का घर बनाया. उसका घर जल्दी बन गया और वह मज़े से खेलने लगा.

दूसरे सूअर ने सोचा कि पेड़ की सूखी टहनियों से बना घर भूसे के घर से मजबूत रहेगा. इसलिए वह पेड़ की टहनियों से घर बनाने में जुट गया. पहले सूअर से उसे थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ी. लेकिन उसका घर भी जल्दी तैयार हो गया और वो भी मज़े से खेलने लगा.

इधर तीसरे सूअर ने बड़े सोच-विचार के बाद ईंट से घर बनाने का निश्चय किया. उसमें बहुत अधिक मेहनत थी. समय भी ज्यादा लगना था. लेकिन वह अपने लिए मजबूत और सुरक्षित घर बनाना चाहता था.

उसे अपना घर बनाने में सात दिन लगे. इस बीच उसे मेहनत करता देख दोनों सूअर उसका मज़ाक उड़ाते कि वह इतनी मेहनत कर बेवकूफ़ी कर रहा है. वे उसे अपने साथ खेलने और मज़े करने के लिए उकसाते. लेकिन तीसरा सूअर काम में लगा रहता. आखिरकार, उसका घर भी बनकर तैयार हो गया. ईंटों से बना वह घर बहुत सुंदर और मजबूत था.

अपने-अपने घर में तीनों सूअर बड़े मज़े से रह रहे थे. वे तीनों बड़े ख़ुश थे. उस स्थान पर उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन एक दिन कहीं से एक भेड़िया वहाँ आ गया. उसकी नज़र जब तीन मोटे-ताज़े सूअरों पर पड़ीं, तो उसके मुँह में पानी आ गया.

वह पहले सूअर ने घर गया और दरवाज़ा ख़टखटाने लगा. उस समय सूअर सो रहा था. दरवाज़ा पर हुई खटकट से उसकी नींद टूट गई. लेकिन उसने तुरंत दरवाज़ा नहीं खोला, बल्कि अंदर से पूछा, “कौन है?”

“दरवाज़ा खोलो. मुझे अंदर आने दो.” भेड़िया बोला.

भेड़िये की कर्कश आवाज़ सुनकर सूअर डर गया. वह समाझ गया कि दरवाज़े पर अवश्य कोई जंगली जानवर है. उसने दरवाज़ा खोलने से इंकार कर दिया.

इस पर भेड़िया आग-बबूला हो गया और चिल्लाया, “सूअर! तू नहीं बचने वाला. मैं अपनी फूंक से तेरे भूसे का घर उड़ा दूंगा. मरने के लिए तैयार हो जा.”

यह कहकर उसने पूरा दम लगाकर फूंक मारी. बेचारे पहले सूअर का भूसे का बना घर उड़ गया. वह अपनी जान बचाकर दूसरे सूअर के घर की ओर भागा. जोर-जोर से दरवाज़ा पीटने पर जब दूसरे सूअर ने दरवाज़ा खोला, तो वह तेजी से अंदर घुसा और दरवाज़ा बंद कर लिया.

उसे डर से कांपते देख दूसरा सूअर हैरान था. लेकिन इससे पहले कि वह कुछ पूछ पाता, भेड़िया उसके घर पहुँचकर दरवाज़ा खटखटाने लगा, “दरवाज़ा खोलो. दरवाज़ा खोलो. मुझे अंदर आने दो.”

भेड़िये की आवाज़ सुनकर पहला सूअर दूसरे से बोला, “भाई, दरवाज़ा मत खोलना. ये ख़तरनाक भेड़िया है, जो हमें खाने आया है.”

दोनों ने दरवाज़ा नहीं खोला. दरवाज़ा नहीं खुलने पर भेड़िया गुस्से से लाल-पीला होकर चिल्लाया, “क्या सोचते हो तुम लोग? दरवाज़ा नहीं खोलोगे, तो बच जाओगे. टहनियों से बना ये घर मैं एक झटके में तोड़ दूंगा.”

दोनों सूअरों की डर के मारे घिग्गी बंध गई. इधर भेड़िये ने पंजा मारकर दूसरे सूअर का टहनियों से बना घर तोड़ दिया. जान बचाकर दोनों सूअर तीसरे सूअर के घर की ओर भागे और उसके घर पहुँचकर उसे सारी बात बताई.

तीसरा सूअर बोला, “डरो मत. ये घर बहुत मजबूत है. भेड़िया इसे नहीं तोड़ सकता.”

लेकिन दोनों सूअरों बहुत डरे हुए थे. वे छुपने की जगह खोजने लगे. तभी भेड़िया वहाँ आ गया और दरवाज़ा पीटने लगा, “दरवाज़ा खोलो…दरवाज़ा खोलो…मुझे अंदर आने दो.”

“हम दरवाज़ा नहीं खोलेंगे.” तीसरा सूअर निडरता से बोला.     

“फिर भी तुम लोग बच नहीं पाओगे. मैं ये घर तोड़ दूंगा और तुम तीनों को मारकर खा जाऊंगा.” भेड़िया चिल्लाया.

उसने फूंक मारकर घर उड़ाने का प्रयास किया. लेकिन कामयाब नहीं हुआ. फिर उसने पंजा मारकर घर तोड़ने की प्रयास किया, लेकिन इसमें भी कामयाब नहीं हुआ.

तीसरे सूअर का घर ईंटों का बना मजबूत घर था. भेड़िये के बहुत प्रयासों के बाद भी वह नहीं टूटा. लेकिन भेड़िये कहाँ हार मानने वाला था. उसने चिमनी के रास्ते घर में घुसने की योजना बनाई.

वह घर की छत पर चढ़ा और चिमनी की ओर बढ़ने लगा. उसके कदमों की आहट जब सूअरों के कानों में पड़ीं, तो पहले दोनों सूअर डर के मारे रोने लगे. लेकिन तीसरे सूअर ने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए चिमनी के नीचे एक बड़े से बर्तन में पानी उबलने के लिए रख दिया.

भेड़िया जब चिमनी से अंदर कूदा, तो सीधे गर्म उबलते पानी में जा गिरा और वहीं मर गया. इस तरह पहले सूअर की निडरता और बुद्धिमानी से तीनों सूअरों की जान बच गई.

दोनों सूअरों को अपनी गलती का अहसास हुआ कि घर बनाते समय उन्हें तीसरे सूअर का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए था. उसने इतनी मेहनत कर इतना मजबूत और सुरक्षित घर बनाया था. जिस कारण आज वे सब जीवित हैं.

अपनी गलती के लिए उन्होंने माफ़ी मांगी. तीसरे सूअर ने उन्हें माफ़ कर दिया और दोनों को अपने घर रहने के लिए बुला लिया. तीनों सूअर उसी घर में एक साथ हंसी-ख़ुशी रहने लगे.

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